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बाइबिल की समझ


कई लोगों को लगता है कि बाइबिल को पढ़ना मुश्किल है. नेक इरादों से पढ़ना शुरू तो कर देते हैं लेकिन इससे पहले कि यह समझे कि वे क्‍या पढ़ रहे हैं, अपनी पढ़ाई बंद कर देते हैं. यह वाकई एक दौर्भाग्‍य है क्‍योंकि (1) बाइबिल, उसी अनंत परमेश्‍वर की वाणी है जिसने इस ब्रह्मांड और उसके सारे तत्‍वों की रचना की, अपनी यह इच्‍छा प्रकट की कि हम अपनी जिंदगी कैसी जीएं, और (2) परमेश्‍वर के वचनों में मुक्ति दिलाने की शक्ति होती है जिसका प्रयोग वह उन लोगों पर करता है जिसे वह मुक्‍त कराना चाहे – परमेश्‍वर के वचनों के अलावा किसी दूसरे तरी‍के से कोई मुक्‍त नहीं हो सकेगा.

हम पर उसकी दया है कि वह हमें यह दिखाता है कि हम, शास्‍त्रों का निर्वचन कैसे करें ताकि हम यह समझ सकें कि वह हमसे क्‍या कह रहा है. अब हम यह देखेंगे कि बाइबिल को समझने के तरीके के बारे में स्‍वयं परमेश्‍वर हमसे क्‍या कहता है.

सिर्फ बाइबिल में, अखंडता से परमेश्‍वर के वचन प्रकट हुए हैं :

2 तीमुथियुस 3:16 हर एक पवित्र शास्‍त्र, परमेश्वर (अक्षरश:, उसमें परमेश्‍वर के प्राण बसते हैं) की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है.

2 पतरस 1:21 क्‍योंकि कोई भी भविष्‍यद्वाणी मनुष्‍य की इच्‍छा से कभी नहीं हुई पर भक्‍त जन पवित्र आत्‍मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे.

1 थिस्‍सलुनीकियों 2:13 इसलिए हम भी परमेश्‍वर का धन्‍यवाद निरन्‍तर करते हैं; कि जब हमारे द्वारा परमेश्‍वर के सुसमाचार का वचन तुम्‍हारे पास पहुंचा, तो तुमने उसे मनुष्‍यों का नहीं, परंतु परमेश्‍वर का वचन समझकर और सचमुच यह ऐसा ही है, ग्रहण किया और यह तुम में जो विश्‍वास रखते हो, प्रभावशाली है.

प्रकाशित वाक्‍य 22:18 प मैं हर एक को जो इस पुस्‍तक की भविष्‍यद्वाणी की बातें सुनता है, गवाही देता हूँ, कि यदि कोई मनुष्‍य इन बातों में कुछ बढ़ाए, तो परमेश्‍वर उन विपत्तियों को जो इस पुस्‍तक में लिखी गई हैं, उस पर बढ़ाएगा :

चूंकि बाइबिल जैसा दूसरा कोई शास्‍त्र नहीं है (इसे इनसान ने नहीं बल्कि अनंत परमेश्‍वर ने लिखा है ), इसलिए बाइबिल पढ़कर समझने के लिए हमें सिर्फ परमेश्‍वर की शरण लेनी होगी. बाइबिल, हमारा एकमात्र प्रमाण होना चाहिए. शास्‍त्र का निर्वचन करते समय नियम बनाने के लिए हमें अपने पाप पीडित दिमाग से निकले तुच्‍छ विचारों का उपयोग नहीं करना चाहिए.

शास्‍त्र का हर एक शब्‍द, मूल पाण्‍डुलिपि का हर एक अक्षर परिपूर्ण और सत्‍य है :

नीति वचन 30:5 ईश्‍वर का एक-एक वचन दोष रहित है; वह अपने शरणागतों की ढाल ठहरा है.

भजन संहिता 12:6 परमेश्‍वर का वचन पवित्र है ; उस चांदी के समान शुद्ध है जिसे पिघला-पिघला कर सात बार शुद्ध बनाया गया हो.

भजन संहिता 119:160 तेरा सारा वचन सत्‍य ही है; और तेरा एक-एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है .

प्रकाशित वाक्‍य 21:5 …और उसने कहा कि लिख ले, क्‍योंकि ये वचन विश्‍वास के योग्‍य और सत्‍य हैं.

मत्‍ती 5:18 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब तक आकाश और पृ‍थ्‍वी टल न जाएं, तब तक व्‍यवस्‍था से एक मात्रा या बिंदु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा.

रोमियों 3:4 कदापि नहीं, वरना परमेश्‍वर सच्‍चा और हर एक झूठा ठहरेगा…

चूंकि ये वचन, परिपूर्ण और सत्‍य हैं, इसलिए बाइबिल में कोई भ्रम या अंतर्विरोध नहीं हो सकता. इस तरह से, अगर हमें ऐसे उद्धरण मिलें जो परस्‍पर विरोधी लगें तो हमें यह जान लेना चाहिए कि हम, उन उद्धरणों में से किसी को ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे हैं. परमेश्‍वर, ऐसे विरोधाभासी उद्धरणों का प्रयोग इसलिए करता है कि हम, शास्‍त्रों के महत्‍वपूर्ण उपदेशों पर ध्‍यान देकर उनका अधिक निष्‍ठा से अध्‍ययन करें .

बाइबिल, परमेश्‍वर की ऐसी शक्ति है जिससे हमारा उद्धार होता है:

रोमियों 1:16 क्‍योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिए कि वह हर एक विश्‍वास करनेवाले के लिए, पहले तो यहूदी, फिर युनानी के लिए उद्धार के निमित्‍त परमेश्‍वर की सामर्थ्‍य है.

रोमियों 10:17 सो विश्‍वास, सुनने से और सुनना, मसीह के वचन से होता है.

दुनिया में इससे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण कोई दूसरा धर्म-ग्रंथ नहीं है. परमेश्‍वर, अपने वचन की शक्ति के अलावा किसी दूसरे तरीके से किसी का उद्धार नहीं करता है. सारी मानव-जाति के लिए यह सबसे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण बात है.

हम बाइबिल को तभी समझ सकेंगे जब परम आत्‍मा, परमेश्‍वर, हमारी (आध्‍यात्मिक) आँखें और दिलो-दिमाग के द्वार खोलें जिससे कि हम उसके अनंत वचन समझ सकें :

1 कुरन्थियों 2:14 परंतु शारीरिक मनुष्‍य, परमेश्‍वर की आत्‍मा की बातें ग्रहण नहीं कर पाता क्‍योंकि वे उसकी दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं और न वह उन्‍हें जान सकता है क्‍योंकि उनकी जांच आत्मिक रीति से होती है.

अय्यूब 32:8 परंतु मनुष्‍य में आत्‍मा तो है ही, और सर्वशक्तिमान अपनी दी हुई साँस से उन्‍हें समझने की शक्ति देता है.

लूका 24:45 ल फिर पवित्र शास्‍त्रों को समझने के लिए उसने (यीशु ने) उनकी बुद्धि के द्वार खोल दिए.

भजन संहिता 119:18 मेरी आँखें खोल दे कि मैं तेरी व्‍यवस्‍था की अद्भुत बातें देख सकूँ.

हमें बाइबिल का अध्‍ययन करते समय विनम्रता से और भक्तिपूर्वक याचना करनी होगी कि परमेश्‍वर, हमारी आध्‍यात्मिक आँखें खोलकर उसके वचन समझने की शक्ति दे.

बाइबिल में स्‍पष्‍ट किया गया है कि बाइबिल को समझने के लिए हमें, शास्‍त्र को शास्‍त्र के साथ (आत्मिक को आत्मिक के साथ) मिलाना होगा :

1 कुरिन्थियों 2:13 जिनको हम मनुष्‍यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परंतु आत्‍मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मिक बातें आत्मिक बातों से मिला-मिलाकर सुनाते हैं.

युहन्‍ना 6:63 …जो बातें मैंने तुमसे कही हैं वे आत्‍मा हैं और जीवन भी हैं.

2 पतरस 1:20 पर पहले यह जान लो कि पवित्र शास्‍त्र की कोई भी भविष्‍यद्वाणी किसी की अपनी ही विचार-धारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती.


बाइबिल, अपनी ही “टीका-टिप्‍पणी” और अपनी ही “शब्‍दावली” के रूप में काम आता है. शब्‍दों और वाक्‍यांशों के अर्थ की परिभाषा, किसी इनसान के विवेक से उत्‍पन्‍न नहीं हुई है बल्कि इनका प्रणेता परमेश्‍वर है – हमें यह देखना होगा कि परमेश्‍वर, इन शब्‍दों का शास्‍त्र में अन्‍यत्र कैसे प्रयोग करता है.

चूँकि समग्र बाइबिल को एक ही रचयिता, परमेश्‍वर ने लिखा है इसलिए हम, बाइबिल के किसी भाग के शब्‍दों और वाक्‍यांशों को, बाइबिल के किसी दूसरे भाग के साथ आश्‍वस्‍त हो कर मिला सकते हैं. परमेश्‍वर हमसे कहता है कि शास्‍त्र को शास्‍त्र के साथ(अध्‍यात्‍म को अध्‍यात्‍म के साथ) मिलाना चाहिए. वह हमसे यह नही कहता है कि इतिहास को इतिहास के साथ अथवा व्‍याकरण को व्‍याकरण के साथ मिलाए जैसे कि आजकल के बहुत सारे धर्मविज्ञानी सिखाते हैं.

अगर परमेश्‍वर ज्ञान प्रदान करे तो, यहां तक कि एक बच्‍चा भी बाइबिल को समझकर अपना उद्धार कर सकता है :

2 तिमुथियुस 3:15 और तुम (तिमुथियुस) पवित्र शास्‍त्रों का बचपन से ज्ञान पा चुके हो जिससे तुम इतने विवेकपूर्ण बन सकते हो कि मसीह यीशु पर विश्‍वास कर अपना उद्धार कर सकते हो.

लेकिन, एक और ख़ास बात है (कुछ हद तक आश्‍चर्य भी होगा) कि बाइबिल को इस तरह से लिखा है कि उस पर विश्‍वास न करनेवालों को उसे समझने में कठिनाई हो – इस धरती पर भ्रमण करते और उपदेश देते समय यीशु ने, अपनी बातें समझाने का जो तरीका अपनाया उसे देखते हुए यह बात संगत लगती है :

नीति वचन 25:2 किसी बात को गुप्‍त रखने में परमेश्‍वर की गरिमा है किंतु किसी बात को ढूँढ़ निकालने में राजा की महिमा है.

भजन संहिता 78:2-3 मैं अपना मुँह नीति वचन कहने के लिए खोलूँगा; मैं प्राचीनकाल की गुप्‍त बातें कहूँगा, जिन बातों को हमने सुना और जान लिया और हमारे बाप-दादाओं ने हमें वर्णन किया है.

(इस “नीतिवचन” में इस्राइल राष्‍ट्र का समग्र इतिहास समा है जो, ऐतिहासिक चित्र पेश करता है या एक प्रकार का सुसमाचार देता है.)

2 पतरस 3:16 अपने अन्‍य सभी पत्रों के समान उस पत्र में उसने इन बातों के विषय में कहा है. उन पत्रों में कुछ बातें ऐसी हैं जिनका समझना कठिन है. अज्ञानी और चंचल लोग उनके अर्थ का अनर्थ करते हैं. दूसरे शास्‍त्रों के साथ भी वे ऐसा ही करते हैं. इससे वे अपने ही पैरों पर कुल्‍हाडी मारते हैं.

अधिक उदाहरण – यीशु ने आम जनता को अपनी बातें पूरी तरह से लगभग दृष्‍टांतों के जरिए समझाई है :

मरकुस 4:33-34 और वह (यीशु) उन्‍हें इस प्रकार के बहुत से दृष्‍टांत दे देकर उनकी समझ के अनुसार वचन सुनाता था. और बिना दृष्‍टांत कहे उनसे कुछ भी नहीं कहता था; परंतु एकांत में वह अपने निज चेलों को सब बातों का अर्थ बताता था.

लूका 8:10 और उसने (यीशु) कहा, तुम को परमेश्‍वर के राज्‍य के भेदों की समझ दी गई है, पर औरों को दृष्‍टांतों में सुनाया जाता है, इसलिए कि वे देखते हुए भी न देखें और सुनते हुए भी न समझें.

बाइबिल में ऐसे कई अनुवाक्‍य हैं जिनका गूढ़ आध्‍यात्मिक अर्थ है और जिनको दृष्‍टांतों और अन्‍योक्तियों के रूप में समझाया गया है.

बाइबिल अपनी ही गवाही देता है कि उसमें प्रारंभ से लेकर अंत तक यीशु के संदेश, मुक्ति के सुसमाचार की भरमार है और यह कि पूर्व-विधान संबंधी बहुत सारी कहानियाँ, वास्‍तव में ऐतिहासिक दृष्‍टांत हैं जो प्रतीकात्‍मक रूप से यीशु की तरफ इशारा करती हैं:

प्रेरितों के काम 3:18 परंतु परमेश्‍वर ने सब भविष्‍यद्वक्‍ताओं के मुख से पहले ही कहलवा दिया था कि उसके मसीह को यातनाएँ भोगनी होंगी. उसने उसे इस तरह पूरा किया.

प्रेरितों के काम 3:24 और सामुएल से लेकर उसके बाद वालों तक जितने भविष्‍यद्वक्‍ताओं ने बातें कही उन सब ने इन दिनों का संदेश दिया है .

युहन्‍ना 5:39 तुम पवित्र शास्‍त्रों में ढूँढ़ते हो, क्‍योंकि समझते हो कि उसमें अनंत जीवन तुम्‍हें मिलता है और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है .

इब्रानियों 10:7 तब मैंने कहा, देख, मैं आया हूँ (पवित्र शास्‍त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है,)ताकि हे परमेश्‍वर, तेरी इच्‍छा पूरी हो.

लूका 24:25-27 तब यीशु ने उनसे कहा, “ हे निर्बुद्धियों और भविष्‍यद्वक्‍ताओं की सब बातों पर विश्‍वास करनेवाले मन्‍दमतियों! क्‍या मसीह के लिए यह आवश्‍यक नहीं था कि वह ये दु:ख उठाकर अपनी महिमा में प्रवेश करें?” तब उसने मूसा से और सब भविष्‍यद्वक्‍ताओं से आरंभ करके, सारे पवित्र शास्‍त्रों में से, अपने विषय में जो भी कहा गया हो उसका अर्थ उनको समझाया.

जैसे-जैसे बाइबिल पढ़ते जाएं, हमारी नज़रें हर कहीं यीशु के सुसमाचार की तरफ मुड़नी चाहिएं. जैसे ही हम यीशु को देखना शुरू कर दें, हम यह जान सकेंगे कि हमें किसी अनुवाक्‍य का सही अर्थ समझ में आ रहा है.

समग्र बाइबिल में, साधारण ऐतिहासिक अथवा नैतिक कथन प्रतीत होने वाले अनुवाक्‍यों के अंदर दृष्‍टांतों और अन्‍योक्तियों के रूप में प्रच्‍छन्‍न गूढ़ आध्‍यात्मिक अर्थ का समावेश है. बाइबिल में हर एक ऐतिहासिक और नैतिक कथन, अभी भी परम सत्‍य है, लेकिन इन अनुवाक्‍यों के प्रतीकात्‍मक, आध्‍यात्मिक संदेश पर गौर करने से हमें इससे भी ज्‍यादा गहरी बातें प्रकट होंगी. अपने वचनों का प्रतीक (गूढ़ आध्‍यात्मिक अर्थ के साथ)समझे बगैर उसे अक्षरश: अपनाने की कोशिश करने पर यीशु को अपने अनुयायियों और फरीसियों को डाँट-फटकारना पड़ा. कुछ उदाहरण हैं :

मत्‍ती 16:6-8 यीशु ने उनसे कहा, देखो; फरीसियों और सदूकियों के ख़मीर से चौकस रहना. वे आपस में विचार करने लगे कि हम तो रोटी नहीं लाए. यह जानकर, यीशु ने कहा, हे अल्‍पविश्‍वासियों, तुम आपस में क्‍यों विचार करते हो कि हमारे पास रोटी नहीं है?

युहन्‍ना 4:11,13 स्‍त्री ने उससे कहा, हे प्रभु, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं और कुआँ गहरा है; तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहा से आया? यीशु ने उसे उत्‍तर दिया कि जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्‍यासा होगा.

(उसने आध्‍यात्मिक प्‍यास को गलती से पीने का पानी समझ लिया).

युहन्‍ना 3:4 नीकुदेमुस ने उससे कहा “ कोई आदमी बूढ़ा हो जाने के बाद फिर जन्‍म कैसे ले सकता है? निश्‍चय ही वह अपनी माँ की कोख में प्रवेश करके दुबारा तो जन्‍म नहीं ले सकता! ”

(अनुवाक्‍य 10 में यीशु का डाँट-फटकारना):

युहन्‍ना 3:10 यीशु ने उसे जवाब देते हुए कहा “ तुम इस्राएलियों के गुरु हो, फिर भी यह नहीं जानते ?”

युहन्‍ना 11:11-13 उसने ये बातें कही और इसके बाद उनसे कहने लगा कि हमारा मित्र, लाजर सो गया है, परंतु मैं उसे जगाने जाता हूँ. तब चेलों ने उससे कहा, हे प्रभु, यदि वह सो गया है तो बच जाएगा. यीशु ने तो उसकी मृत्‍यु के विषय में कहा था; परंतु वे समझें कि उसने नींद से सो जाने के विषय में कहा.

युहन्‍ना 6:51-53, 60-61,66 जीवन की रोटी जो स्‍वर्ग से उतरी है, वह,मैं हूँ. यदि कोई इस रोटी में से खाए तो, सर्वदा जीवित रहेगा और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिए दूँगा, वह मेरा मांस है. इस पर यहूदी यह कहकर आपस में झगड़ने लगे कि यह मनुष्‍य क्‍योंकर हमें अपना मांस खाने को दे सकता है? यीशु ने उनसे कहा; मैं तुम से सच कहता हूँ, जब तक मनुष्‍य के पुत्र का मांस न खाओ और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं होगा. …इसलिए उसके चेलों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा कि यह बात नागवार है; इसे कौन सुन सकता है? यीशु ने अपने मन में यह जानकर कि मेरे चेले आपस में इस बात पर कुड़कुड़ाते हैं, उनसे पूछा; क्‍या इस बात से तुम्‍हें ठोकर लगती है?… इस पर उसके चेलों में से बहुतेरे उल्‍टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चलें.

लूका 24:45-46 फिर पवित्र शास्‍त्रों को समझाने के लिए उसने उनकी बुद्धि के द्वार खोल दिए, और उसने उनसे कहा, “ यो लिखा है; कि मसीह दु:ख उठाएगा और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा:”

यहां यीशु कह रहे हैं कि पूर्व-विधान संबंधी शास्‍त्रों में लिखा गया है कि यीशु को मारना पड़ा और तीसरे दिन पुनर्जीवित हो गया. लेकिन पूर्व-विधान में कहीं भी इस बात का स्‍पष्‍ट उल्‍लेख नहीं है – इसका सिर्फ अन्‍योक्ति के रूप में उल्‍लेख किया गया है जैसे कि योना 1:17 में उल्‍लेख है:

“यहोवा ने एक बड़ा सा मगरमच्‍छ ठहराया था कि वह योना को निगल ले; और योना उस मगरमच्‍छ के पेट में तीन दिन और तीन रात पड़ा रहा ”.

यीशु, पूर्व-विधान के अनुवाक्‍य की तरफ इशारा करते हैं, यह दिखाने के लिए कि मत्‍ती 12:40 में उनके पुनर्जीवन का अन्‍योक्ति के रूप में वर्णन किया गया है. इस प्रकार से, यीशु हमें संकेत देते हैं कि योना की कहानी ठीक तरह से समझने के लिए, हमें इस बात पर अवश्‍य गौर करना होगा कि यीशु के पुनर्जीवन के बारे में उसमें क्‍या कहा गया है.

लूका 17:12,14-17 और किसी गांव में प्रवेश करते समय उसे दस कोढ़ी मिले. वे कुछ दूरी पर खड़े थे. फिर जब उसने उन्‍हें देखा तो वह बोला, “ जाओ और अपने आपको याजको को दिखाओ”. वे अभी जा ही रहे थे कि वे कोढ़ से मुक्‍त हो गए. किंतु उनमें से एक ने जब यह देखा कि वह शुद्ध हो गया है, तो वह वापस लौटा और ऊँचे स्‍वर में परमेश्‍वर की स्‍तुति करने लगा. वह मुँह के बल यीशु के चरणों में गिर पड़ा और उसका आभार व्‍यक्‍त किया. और देखो, वह एक सामरी था. यीशु ने उससे पूछा, “ क्‍या सभी दस के दस कोढ़ से मुक्‍त नहीं हो गए? फिर वे नौ कहां हैं? ”

इस दृष्‍टांत में हमें एक स्‍पष्‍ट संकेत मिला है कि शास्‍त्रों के आध्‍यात्मिक पहलुओं को कैसे समझना चाहिए. यहां, पूर्व-विधान की आज्ञा के मुताबिक यीशु, दस कोढ़ियों को आदेश देते हैं कि वे, अपने आपको याजको को दिखाएं. वे, लैव्‍यव्‍यवस्‍था 14:2 के धर्मानुष्‍ठान संबंधी नियमों का हवाला दे रहे थे जिसमें कहा गया है:

“ कोढ़ी के शुद्ध ठहराने की व्‍यवस्‍था यह है कि इसे याजक के पास पहुंचाया जाए ”.

एक कोढ़ी को जवाब देते समय यीशु हमें यह दिखाते हैं कि इस आदेश को वास्‍तव में आध्‍यात्मिक दृष्टि से समझना चाहिए और इसका इशारा है कि हम बड़े महा याजक (इब्रानियों 4:14) के पास जाएं, जिससे हमारा उद्धार हो. यीशु ने दूसरे नौ कोढ़ियों को डांट-फटकारा कि उन्‍होंने, महा याजक, यीशु के पास अपने आपको दिखाकर धन्‍यवाद देने की उनकी आज्ञा का सही आध्‍यात्मिक आशय नजरंदाज करते हुए परमेश्‍वर के शाब्दिक आदेश का पालन किया.

बाइबिल, एक आध्‍यात्मिक धर्म–ग्रंथ है और इसे, नैतिक उपदेश , इतिहास या कविता या ज्ञान की किताब की तरह नहीं पढ़ना चाहिए. इसमें मानव जाति की महानतम ज़रूरत – मुक्ति पर ख़ास ध्‍यान दिया गया है.

युहन्‍ना 6:63 आत्‍मा ही है जो जीवन देती है. देह का कोई उपयोग नहीं है. वचन, जो मैंने तुमसे कहे हैं, आत्‍मा है और वे ही जीवन देते हैं.

रोमियों 7:14 क्‍योंकि हम जानते हैं कि व्‍यवस्‍था तो आत्मिक है,परंतु मैं शारीरिक हूँ और पाप के हाथ बिका हुआ हूँ.

सो, बाइबिल को पढ़ने और समझने के तरीके के बारे में परमेश्‍वर के महत्‍वपूर्ण उपदेश का सारांश हम इस तरह से निकाल सकते हैं :

  1. बाइबिल पढ़ने से पहले हमेशा प्रार्थना किया करें क्‍योंकि परम आत्‍मा, परमेश्‍वर ही हमारी आँखें खोलकर अपने अनंत वचनों का अर्थ समझा सकता है.

  2. यह जान लें कि शास्‍त्र में हर एक कथन, स्‍वयं परमेश्‍वर ने लिखा है और वह पूरी तरह से सत्‍य है; इसलिए वह, हर दूसरे कथन से संगत होगा. अगर कोई विरोधाभास हो तो, जान लेना चाहिए कि कथनों में से एक को हम अभी ठी‍क तरह से समझ नहीं पाए हैं.

  3. हमें इस शास्‍त्र की इसी शास्‍त्र के साथ तुलना करनी होगी. बाइबिल की अपनी ही शब्‍दावली है और उसके शब्‍दों को उसमें ही परिभाषित किया गया है. इसका मतलब है कि बाइबिल पढ़ते समय, अगर हमें कोई ऐसा अनुवाक्‍य या विचार नज़र आए जिसके बारे में यह लगे कि उसका सरोकार किसी ऐसे अनुवाक्‍यों से है, जिसे हमने पढ़ लिया है तो, उसे नोट कर लेना चाहिए. इन अनुवाक्‍यों का एक साथ अध्‍ययन करने से हम, उनको बेहतर समझ सकेंगे क्‍योंकि प्रत्‍येक अनुवाक्‍य में समग्र अर्थ समझने के लिए अलग–अलग संकेत मिल सकते हैं. एक और उलझन यह है कि हम, बाइबिल संबंधी शब्‍द का अर्थ ढूँढने के लिए यूनानी या यहूदी शब्‍दावलियों का सहारा नहीं लेते हैं; बदले में हमें देखना होगा कि परमेश्‍वर ने, बाइबिल में अन्‍यत्र, यूनानी या यहूदी शब्‍द का कैसे प्रयोग किया है. यह काम आसान बनाने के लिए बेहतरीन साधन उपलब्‍ध हैं–जैसे स्‍ट्राँग की शब्‍दानुक्रमणिका या यंग की विश्‍लेषणात्‍मक शब्‍दानुक्रमणिका एवं वैयक्तिक कंप्‍यूटर के लिए बाइबिल खोज सॉफ्टवेयर, जिसे नि:शुल्‍क ईबीएफ1 सीडी के जरिए हमारे वेबवाइट www.ebiblefellowship.com/free_cd से हासिल किया जा सकता है. इस सॉफ्टवेयर के हेल्‍प मेनू से नि:शुल्‍क कई दूसरी बाइबिल भाषाओं को डाउनलोड किया जा सकता है. इन साधनों से, हम, मूल भाषाएं सीखे बगैर ही, उन सभी अनुवाक्‍यों को ढूँढ सकेंगे जिनमें किसी निर्दिष्‍ट यूनानी या यहूदी का प्रयोग किया गया हो.

  4. समग्र बाइबिल, पूर्व-विधान और नव-विधान, दोनों में, मुक्ति के संबंध में परमेश्‍वर का सुसमाचार है जिसमें इन बातों की ओर इशारा किया गया है जैसे; मिलनेवाले ईश्‍वरीय दंड से मुक्‍त होने के लिए पापी का उद्धार होने की ज़रूरत, सूली पर प्रायश्चित पूर्वक ईशू का आत्‍मत्‍याग जब कि तथ्‍य यह है कि ऐसी मुक्ति दिलाना, पूरी तरह से परमेश्‍वर का सर्वश्रेष्‍ठ कार्य है या संबंधित आध्‍यात्मिक सत्‍य है. प्रतीकात्‍मक अथवा लाक्षणिक अर्थ का इशारा, अंत में यीशु और उसके सुसमाचार की तरफ ही होना चाहिए एवं शास्‍त्र में उल्लिखित हर एक बात से संगत होना चाहिए.

  5. दृष्‍टांतों और अन्‍योक्तियों को जानबूझकर थोपना नहीं चाहिए… सत्‍य के प्रतीक और प्रतिबिम्‍ब होने के नाते, कभी कभार ये, निहित सत्‍य के हर पहलू के लिए लागू नहीं होते हैं. इसका मतलब है कि ये, इंगित तात्‍पर्य के कुछ पहलू सिखाते हैं, लेकिन हो सकता है कि अपूर्ण हों या किसी ऐसे पहलू की तरफ इशरा करे जिसे अपनाना संभव न हो. इसी मोड़ पर मद #2 का सिद्धांत अपनाना चाहिए–लेकिन यह देखना चाहिए कि उसके निष्‍कर्ष, शास्‍त्र में उस विषय पर उल्लिखित हर एक बात से संगत हैं.

  6. शास्‍त्र में अभी भी ऐसे पहलू होंगे जिनका खुलासा न हुआ हो. हमें विनम्रता से कबूल करना चाहिए कि इस जिंदगी में हमारा “ ज्ञान अधूरा है ” और “ वक्‍त आने पर वह परिपूर्ण होगा ” (1 कुरिन्थियों 13:12).

भजन संहिता 119:97 आ हा! यहोवा तेरी शिक्षाओं से मुझे प्रेम है. हर घड़ी मैं उनका ही बखान किया करता हूँ.

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UTB.10.15.2008.Hi